"कूड़ु निखुटे नानका ओड़कि सचि रही ॥"
6:51 PM
दो अलग अलग घटनाओं और वायरल वीडियो घालमेल करके उसका जिक्र सोशल मीडिया पर इन दिनों चल रहा है मेरी उसमें रूचि कत्तई नहीं मगर तथ्यात्मक बात ये है कि अभी जो वीडियो वायरल हो रहा है वह कर्नाटक का नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले का है। हालांकि उन वायरल पोस्टों में जो "6 लाख रुपये" की मांग वाली बात कही जा रही है, वह हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट के एक अलग मामले से जुड़कर सोशल मीडिया पर भ्रम पैदा कर रही है।
दोनों घटनाओं का सही विवरण समझिए बहराइच (UP) की घटना (यानी वीडियो में दिख रही घटना) की पोस्ट में शेयर की गई तस्वीर और पिटाई वाला वीडियो दिसंबर 2022 में उत्तर प्रदेश के बहराइच जिला न्यायालय परिसर के बाहर का है जिसमें पति-पत्नी के बीच तलाक और भरण-पोषण का मामला चल रहा था।
जिसमें कोर्ट से बाहर निकलते ही पत्नी ने गुस्से में पति की जमकर इसलिए पिटाई कर दी, उसके बाल खींचे और थप्पड़ मारे कि पत्नी को बड़ी उम्मीद थी कि उसे कोर्ट की मदद से एक बड़ी राशि मिलेगी, लेकिन पति द्वारा कानूनी दांव-पेच और सारी संपत्ति के माँ के नाम हस्तांतरण कर देने के कारण उसके हाथ कुछ खास नहीं लगा और पति भी इस पूरी पिटाई के दौरान लगातार मुस्कुराता रहा और उसने पलटकर वार नहीं किया।
उसकी हारकर भी जीत जाने वाली यह "विजयी मुस्कान" और शांत व्यवहार ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
6 लाख रुपये प्रति माह मेंटेनेंस की मांग वाला जो मामला है वो कर्नाटक हाईकोर्ट का है, वो अगस्त 2024 में तब चर्चा में आया जब एक महिला ने अपने पति की हैसियत न होते हुए भी उससे ₹6,16,300 प्रति माह गुजारा भत्ता मांगा था।
महिला के वकील ने कोर्ट में बताया कि उसे ₹15,000 कपड़ों/जूतों के लिए, ₹60,000 घर के खाने के लिए और ₹4-5 लाख घुटने के दर्द के इलाज व फिजियोथेरेपी के लिए चाहिए।
कर्नाटक हाईकोर्ट की जज ललिता कन्नेगंती ने इस मांग को "अतार्किक" बताते हुए व महिला को फटकार लगाते हुए कहा, "अगर इतना खर्च करना है तो खुद कमाओ।"
सोशल मीडिया पर लाइक व्यू और शेयर की कुत्तालिकणी में फँसे इनफ़्लुएंसरों द्वारा सनसनी फैला कर पैसा कमाने की चाह में व इस तरह के कुचक्र में बर्बाद हो चुके हज़ारों परिवारों के किसी सदस्य द्वारा उनके जैसे ही बाकी लोगों कुछ मानसिक सकून मिल सके इसलिए अक्सर इस तरह की अलग-अलग घटनाओं को आपस मे जोड़ कर वायरल कर दिया जाता है
लाइक, व्यूज और शेयर की इस अंधी दौड़ ने सूचनाओं के स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ दिया है अक्सर इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स दो अलग-अलग घटनाओं को जोड़कर एक "सिनेमैटिक सी स्टोरी" बना देते हैं, इस मामले में भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है जहां पारिवारिक विवादों से जूझ रहे हजारों लोग जब इस तरह के वीडियो देखते हैं, तो उन्हें एक "काल्पनिक न्याय" वाला कल्पित सुख महसूस होता है। उन्हें लगता है कि कानून से हमने न सही, किसी ने तो दिमाग से सामने वाले को हराया है
इस तरह के "कुचक्र" और गलत सूचनाओं से भरे वीडियो उन परिवारों को और भी भ्रमित करते हैं जो पहले से ही कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लोग कानून की बारीकियों को समझने के बजाय इन 'शॉर्टकट' कहानियों पर यकीन करने लगते हैं, जिससे बाद में उन्हें कानूनी मोर्चे पर और भी बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है।
यह वाकई चिंताजनक है कि पैसा कमाने की चाह में इन्फ्लुएंसर्स लोगों की व्यक्तिगत त्रासदी को मनोरंजन का साधन बना देते हैं।
इस पूरी स्थिति को देखते हुए गुरबाणी की यह पवित्र पंक्ति याद आती है:
इस पूरी स्थिति को देखते हुए गुरबाणी की यह पवित्र पंक्ति याद आती है:
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