बागड़ी की एक कहावत है
“ऊत का गुरू जूत होता है”
और हिन्दु समाज इस कहावत को बखूबी जानते हुए भी सदैव धर्म के खिलाफ होने वाले प्रत्येक कृत्य को अनदेखा करता रहा
क्यों??????
क्योंकि हिन्दु माताएं बचपन से यही सिखाते रही
कि
पैर के नीचे चींटी भी आ जाये तो मां के मूंह से सी निकल जाती थी और कहती थी "बेटा तुने कीड़ी(चिंटी) मार दी... तुझे पाप लगेगा”
ये सीख पग पग पर माता, पिता, परिवार, गांव व धर्मगुरूओं द्वारा आज भी दी जाती है
पालन भी होता है
मगर
इसी अनदेखा करने की आदत या सहनशीलता को कमजोरी समझा गया
सन 1925 में डा. केशवराव ने इन सदगुण विकृतीयों को भली भांति देखा, समझा और अपना सर्वस्व जीवन अर्पण करते हुए देश के लिये अपना एक एक पल जीना शुरू किया
ठीक इसी समय अंग्रेजों के पालतु लोगों नें संघ या संघ के समान विचारों वाले लोगों को सोची समझी साजिश के तहत बदनाम करना शुरू किया
नाना प्रकार की अफवाहें व फर्जी माफीनामें अंग्रेजों ने संग्रहीत करने शुरू किये
इतिहास के नाम पर सफेद झूठ का पुलिन्दा इकट्ठा होने लगा
काले अंग्रेजों की टोली दिनरात इसी ताक में रहती कि कब संघ को कुचला जाये
कई दिन से देख रहा हूं कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी बाहुबली 2 में उमड़ने वाली भीड़ को सुकमा शहीदों के प्रति उदासीनता सिद्ध करने की कोशिश कर रहे है
आज उन्हे सुकमा के लिये बाहुबली की सफलता या सिनेमाघरों में उमड़ती भीड़ नहीं दुख रही जनाब
दुख रही है कि राजामौली ने एक झटके में मैकालेपुत्रों के अघोषित एजेंडे के जगजाहिर कर दिया
उनकी छटपटाहट साफ ईशारा कर रही है कि वे और सिनेजगत में काम करने वाले भाड़े के मजदूर कला के नाम पर क्या क्या परोसते रहे
जब भी उन षड़यंत्रों का विरोध हुआ तब तब उन्होने मीडिया व साहित्य के जगत में में बैठे अपने गुलाम शिखंडियों के संलीपर सेलों को सक्रिय कर गंगा जमुनी तहजीब के राग अलापे
देश की एकता अखंडता पे आघात बताया
पुरूस्कार लौटाने के पाखंड किये
याद कीजिये इन फर्जी सेक्युलरों के श्रखंलाबद्ध कुत्सित षड़यंत्रों को
जब नाटक व सिनेमा की आड़ लेकर हिन्दु युवाओं को सैंकड़ो साल अपनी सत्तापिपासा की पुर्ती हेतु दिग्भ्रमित करने में सफल रहे
आज धीरे धीरे आपकी केचुंली उतर रही है
अब इन हरामीयों का दायरा चंद जंगलों तक
या
चंद विश्वविद्यालयों में सिमट कर रह गया तो अफवाहों भरी देशभक्ति सूझ रही है
खुद आतंकवाद व माओवाद के भस्मासुर को पालने वाले हाथ में सरसों उगाने की बात करते हैं
“ऊत का गुरू जूत होता है”
और हिन्दु समाज इस कहावत को बखूबी जानते हुए भी सदैव धर्म के खिलाफ होने वाले प्रत्येक कृत्य को अनदेखा करता रहा
क्यों??????
क्योंकि हिन्दु माताएं बचपन से यही सिखाते रही
कि
पैर के नीचे चींटी भी आ जाये तो मां के मूंह से सी निकल जाती थी और कहती थी "बेटा तुने कीड़ी(चिंटी) मार दी... तुझे पाप लगेगा”
ये सीख पग पग पर माता, पिता, परिवार, गांव व धर्मगुरूओं द्वारा आज भी दी जाती है
पालन भी होता है
मगर
इसी अनदेखा करने की आदत या सहनशीलता को कमजोरी समझा गया
सन 1925 में डा. केशवराव ने इन सदगुण विकृतीयों को भली भांति देखा, समझा और अपना सर्वस्व जीवन अर्पण करते हुए देश के लिये अपना एक एक पल जीना शुरू किया
ठीक इसी समय अंग्रेजों के पालतु लोगों नें संघ या संघ के समान विचारों वाले लोगों को सोची समझी साजिश के तहत बदनाम करना शुरू किया
नाना प्रकार की अफवाहें व फर्जी माफीनामें अंग्रेजों ने संग्रहीत करने शुरू किये
इतिहास के नाम पर सफेद झूठ का पुलिन्दा इकट्ठा होने लगा
काले अंग्रेजों की टोली दिनरात इसी ताक में रहती कि कब संघ को कुचला जाये
कई दिन से देख रहा हूं कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी बाहुबली 2 में उमड़ने वाली भीड़ को सुकमा शहीदों के प्रति उदासीनता सिद्ध करने की कोशिश कर रहे है
आज उन्हे सुकमा के लिये बाहुबली की सफलता या सिनेमाघरों में उमड़ती भीड़ नहीं दुख रही जनाब
दुख रही है कि राजामौली ने एक झटके में मैकालेपुत्रों के अघोषित एजेंडे के जगजाहिर कर दिया
उनकी छटपटाहट साफ ईशारा कर रही है कि वे और सिनेजगत में काम करने वाले भाड़े के मजदूर कला के नाम पर क्या क्या परोसते रहे
जब भी उन षड़यंत्रों का विरोध हुआ तब तब उन्होने मीडिया व साहित्य के जगत में में बैठे अपने गुलाम शिखंडियों के संलीपर सेलों को सक्रिय कर गंगा जमुनी तहजीब के राग अलापे
देश की एकता अखंडता पे आघात बताया
पुरूस्कार लौटाने के पाखंड किये
याद कीजिये इन फर्जी सेक्युलरों के श्रखंलाबद्ध कुत्सित षड़यंत्रों को
जब नाटक व सिनेमा की आड़ लेकर हिन्दु युवाओं को सैंकड़ो साल अपनी सत्तापिपासा की पुर्ती हेतु दिग्भ्रमित करने में सफल रहे
आज धीरे धीरे आपकी केचुंली उतर रही है
अब इन हरामीयों का दायरा चंद जंगलों तक
या
चंद विश्वविद्यालयों में सिमट कर रह गया तो अफवाहों भरी देशभक्ति सूझ रही है
खुद आतंकवाद व माओवाद के भस्मासुर को पालने वाले हाथ में सरसों उगाने की बात करते हैं